उन पीपल की पत्तियों के
नोक पे झूला झूलती
बरसात की बूंदों से
मैंने एक निर्दोष चमक
मांगी थी,
उस जामुन के पेड़ के नीचे
जामुनी रंग के कालीन पे
लहरों की तरह भागती गिलहरी
से मैंने सरल चंचलता
मांगी थी,
उन पुरानी नज्मों की
किताबों में भूले हुए
फूल की पंखुड़ियों से
मैंने एक रूमानी शेर
माँगा था,
याद है मुझे,तुमको मिलने
के कुछ रात पहले ही
मैंने खुदा से एक
बेदाग़ चाँद
माँगा था.
ख़ुशी है जब माँगा
खुदा सुन रहा था,
शायद उसको भी नहीं होगा मालूम
उसको सुनाने के लिए
मैंने हर पल
तुमको
माँगा था.
:) is musafir ki raat ko chaand mil gaya. mubarakan!
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